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बोनालु दक्षिण भारत के तेलंगाना क्षेत्र का एक बहुत ही प्रसिद्ध लोक त्योहार है। "बोनालू" शब्द "भोजानालु" से बना है जिसका अर्थ है भोजन अथवा प्रसाद , जो देवी को अर्पित किया जाता है। यह शताब्दी परंपरा अत्यंत हर्ष और भक्ति के साथ मनाई जाती है। यह आषाढ़ माह के दौरान मनाया जाता है। महीने भर चलने वाले इस त्योहार में पोचम्मा, मैसम्मा, गंडिमैसम्मा, नल्लापोचम्मा, एल्लम्मा, पोलेरम्मा, महांकालम्मा के देवताओं की भक्ति और अनुष्ठान पूजा के गीतों के साथ मनाया जाता है।
बोनालू त्योहार में महिलाए चावल,गुड़ और दूध को मिलाकर प्रसाद बनाया जाता है,महिलाए सजती सवरती है,फिर उसके बाद एक मिटटी के बर्तन में प्रसाद को रखते है ,फिर उस बर्तन के चारो और नीम की पट्टी और हल्दी से उसे सजाते है और प्रसाद के साथ माता का श्रृंगार का सामान भी उसमे रखते है | सभी महिलाए जो जुलुस में शामिल होती है वो सभी इन सजे हुए बर्तनो को अपने सर पर रखती है | जुलुस में पुरुष ढोल बजाते हुए उनके साथ साथ चलते है और मंदिर तक जाते है ।
बोनालु के जुलुस में भक्त हिंदू देवी महाकाली के भाई पोथराजू के रूप में कपड़े पहन कर भी शामिल होते है,कुछ देवी काली का रूप भी धारण करती है ,इस प्रकार से अलग अलग और बहुत ही सुन्दर झांकी बनाकर जुलुस को बहुत ही सुन्दर रूप दिए जाता है | सभी मिलकर देवी काली से अपने स्वास्थ के लिए प्रार्थना करते है | महिलाए चमकीले रंग के वस्त्र और साड़ी पहन कर ताल से ताल मिलाकर चलती है,महाकाली की धुन और संगीत भी साथ में गेट और बजाते हुए चलते है | उत्सव केवल जुलाई और अगस्त के महीनों में आयोजित किया जाता है।
हजारों लाखो की संख्या में प्रतिभागी देवी के रंगों के अनुसार सजते-संवरते हैं, फिर वो जुलुस में शामिल हो जाते है और गलियों में एक लंबे जुलूस में तब तक नाचते हैं, जब तक वे श्री अक्कन्ना मदन्ना महाकाली के मंदिर तक नहीं पहुँच जाते। जुलुस के बाद, परिवार के सुब लोग इकट्ठा होते हैं और रात का खाना एक साथ मिलकर ग्रहण करते हैं।
इस परंपरा का जन्म वर्ष 1813 में हुआ था, जब भारत में एक बीमारी दिखाई दी जिसे हैजा कहते है | 19 वीं शताब्दी की शुरुआत में भारत में दो जुड़वाँ शहर हैदराबाद और सिकंदराबाद में हैजा बहुत तेज़ी से फ़ैल रहा था | चारो तरफ लोग परेशान हो रहे थे ऐसे में उन्होंने इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए महाकाली की प्राथना की और उन्होंने उनसे कहा की अगर देवी महाकाली इस बीमारी से छुटकारा दिला देती है तो सुब मिलकर उनका मंदिर बनवाएंगे | प्रार्थना खत्म होने के तुरंत बाद से ही बीमारी कम होने लगी और देखते ही देखते दोनों शहर हैजा से मुक्त हो गए,उसके बाद सभी निवासियों ने देवी महाकाली का आभार व्यक्त करते हुए महाकाली की प्रतिमा और मंदिर बनाया और उसी दिन से बोनालू की परंपरा शुरू की । कुछ अन्य लोगो का मानना है की बोनालु की शुरुआत देवी महाकाली के घर लौटने की ख़ुशी की वजह से शुरू हुआ ।
भारत वर्ष में लगभग 33 करोड़ देवी देवताओं माने जाते है लेकिन उनमे से केवल देवी महाकाली को प्रार्थना के लिए संभवतः चुना गया था, क्योंकि हिंदू पौराणिक कथाओं का कहना है कि वह इस क्षेत्र की मूल निवासी है और पारंपरिक रूप से आषाढ़ के महीने में वो अपने पैतृक घर लौट आई थी।
इसे खासतौर पर हैदराबाद और सिकंदराबाद के जुड़वां शहरों में मुख्य रूप से मनाया जाता है। इस त्योहार के दौरान, गोलकोंडे किले के शीर्ष पर स्थित श्री जगदम्बिका मंदिर में पड़ोसी जिलों से बड़ी संख्या में भक्त इस मंदिर में आते है और पूर्ण श्रध्दा से पूजा और सुख के लिए प्रार्थना करते है। मुस्लिम सम्राटों ने भी इस मंदिर में जाकर पूजा अर्चना की थी इसलिए इस त्योहार की लोकप्रियता और ज्यादा है । इस दिन राज्य सरकार भी लोगों की ओर से आधिकारिक रूप से पूजा करती है और पब्लिक की सुख शांति की कामना करती है ।
बोनालु एक भारतीय क्षेत्रीय सार्वजनिक अवकाश है, जो तेलंगाना में मनाया जाता है। आषाढ़ जतारा के रूप में भी जाना जाता है, यह आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है।
ध्यान दें कि त्योहार कई दिनों तक चलता है और हम जो भी तारीख दिखाते और देते हैं वह बिलकुल सटीक होती है , अभी तक आधिकारिक तेलंगाना अवकाश की सूची जारी नहीं हुई है| जैसे ही सूची जारी होती है,हम उसे तुरंत ही अपडेट कर देंगे।
यह एक बहुत ही लोकप्रिय त्यौहार है जिसमे देवी महाकाली की वंदना की जाती है,महाकाली को समय और मृत्यु की देवी मन जाता है । यह त्यौहार पूरे राज्य में मनाया जाता है, लेकिन मुख्य उत्सव हैदराबाद और सिकंदराबाद जुड़वां शहरों में मनाया जाता हैं।
बोनालु शब्द को तेलुगु शब्द से लिया गया है। बोनालु उत्सव के दौरान विशेष पूजा (पूजा के कार्य) के रूप में देवी को सम्मान देने के लिए तैयार भोजन के साथ मानते है,इसमें बोनालु अर्थात भोजन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। त्यौहार के दौरान महाकाली अपने सभी रूपों में अलग-अलग मंदिरों में प्रतिष्ठित होती है। और सभी लोग मंदिर में जाकर पूर्ण श्रध्दा से देवी महाकाली की पूजा करके अपने स्वास्थ के लिए कामना करते है ।
बोनालु त्यौहार सदियों पहले से मनाया जाता है लेकिन बोनालु को 2014 से तेलंगाना में एक आधिकारिक राज्य उत्सव का दर्जा मिला है। मृत्यु की देवी के रूप में महाकाली को जाना जाता है और आमतौर पर उनकी चार भुजाओं वाले शस्त्रों और एक सिर के साथ भव्य रूप से चित्रित किया जाता है। महाकाली की त्वचा नीली और आँखे लाल दर्शाई गई है और उनके गले में दानव खोपड़ी से बना हुआ एक हार पड़ा रहता है ,ये उन दानवो की खोपड़ी का हार होता है जिन्हे उन्होंने मार दिया होता है।
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