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वशिष्ठ नारायण सिंह गणितीय दुनिया के सबसे बड़े गणितज्ञो में से एक थे, उन्होंने अपना जीवन उदासीनता और उपेक्षा में बिताया था। वशिष्ठ नारायण सिंह ने अपना जीवन अपने पसंदीदा विषय गणित की छाया में बिताया था, लेकिन उनकी कहानी एक मानसिक बीमारी ने बीच में ही रोक दी थी और उस बीमारी ने उन्हें उनके पसंदीदा विषय गणित और दुनिया से अलग कर दिया था| वशिष्ठ नारायण सिंह एक भारतीय अकादमिक भी थे और उन्होंने 1960 और 1970 के बीच विभिन्न संस्थानों में गणित पढ़ाया था।
वशिष्ठ नारायण सिंह का जन्म 2 अप्रैल 1946 को बिहार के भोजपुर जिले के बसंतपुर गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम लाल बहादुर सिंह और और माता का नाम ल्हासा देवी था। नारायण सिंह ने अपने बचपन में ही उन्होंने संख्याओं के साथ अपनी क्षमता का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था, जिसे देखकर उनके शिक्षक भी हैरान हो जाया करते थे| वशिष्ठ नारायण सिंह ने नेतरहाट आवासीय विद्यालय से अपनी शुरूआती स्कूली शिक्षा पूरी की और वर्ष 1963 में उन्होंने पटना साइंस कॉलेज में दाखिला ले लिया। नारायण सिंह पढ़ाई में बहुत तेज होने की वजह से कॉलेज के प्रिंसिपल उनसे बहुत ज्यादा प्रभावित हुए और उन्होंने राज्यपाल और विश्वविद्यालय के चांसलर से आग्रह किया कि वो पहले साल में ही नारायण सिंह को अपनी तीन साल की बीएससी परीक्षा में बैठने की अनुमति दे दें| वशिष्ठ नारायण सिंह की प्रतिभा की वजह से उन्हें अनुमति मिल गई और बाद में उन्होंने अगले साल एमएससी की परीक्षा भी दे दी। नारायण सिंह ने दोनों परीक्षाओं में टॉप किया और इस खबर से वो पूरे राज्य में प्रसिद्ध हो गए थे।
नारायण सिंह के बारे में काफी सारी कहानियाँ थीं लेकिन उनमे से प्रमुख तब की है जब वो पटना साइंस कॉलेज में अध्ययन करते थे, इस दौरान नारायण सिंह की मुलाकात प्रोफेसर केली से हुई| केली उस समय कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में गणित विभाग के प्रमुख थे और वो पटना साइंस कॉलेज में कुछ दिनों की शिक्षा देने के लिए आए थे। नारायण सिंह की प्रतिभा को परखने के लिए प्रोफेसर केली ने उन्हें कुछ सवाल हल करने के लिए दिए, जिसे युवा नारायण सिंह ने कई तरीको से हल करके केली को दे दिए, नारायण की प्रतिभा से केली बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए नारायण सिंह को कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय बर्कले में आमंत्रित किया। यह भी माना जाता था कि केली ने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में नारायण की शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए छात्रवृत्ति की व्यवस्था भी कराई थी।
उन्होंने 1969 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय बर्कले से रिप्रोड्यूसिंग कर्नल्स एंड ऑपरेटर्स विद साइक्लिक वेक्टर में शोध करके पीएचडी की डिग्री प्राप्त कर ली थी, फिर उसके बाद वो एसोसिएट साइंटिस्ट प्रोफेसर के रूप में नासा में शामिल हो गए। कुछ लोग बताते हैं कि एक बार नासा के कंप्यूटरों ने किसी कारण से काम करना बंद कर दिया था, तब नारायण सिंह को कुछ गणना करने के लिए बुलाया गया। जब कंप्यूटर ने काम करना शुरू किया तो सिंह की गणना और मशीनों की गणना एक थी। यह भी माना जाता है कि नारायण सिंह ने अल्बर्ट आइंस्टीन E = mc2 को भी गलत साबित किया था।
भारत के एक छोटे से गाँव के रहने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह के साथ 1970 के दशक में बहुत सारी ऐसी घटनाए हुई जिसकी वजह से अमेरिका में उनकी प्रसिद्धि काफी बढ़ गई थी और उस समय कि उनकी गणितीय उपलब्धियां भी उल्लेखनीय थीं। वशिष्ठ नारायण सिंह के घर पर उनकी शादी के लिए कई सारे प्रस्ताव आए, जिसकी वजह से उनके परिवार के सभी सदस्यों ने उन पर शादी करने का दबाव डाला। काफी दिनों तक वो शादी को टालते रहे लेकिन वर्ष 1973 में वशिष्ठ नारायण सिंह की शादी वंदना रानी सिंह से हो गई, शादी के बाद नारायण अपनी पत्नी के साथ अमेरिका चले गए थे| लेकिन शादी के कुछ दिन बाद नारायण सिंह सिज़ोफ्रेनिया नामक बीमारी से ग्रस्त हो गए जिसके चलते 3 साल बाद उनका तलाक हो गया। 1974 में नारायण भारत लौट आए और आठ महीने तक उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर में पढ़ाया, उसके बाद वो बॉम्बे के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में शामिल हो गए और वहां शॉर्ट टर्म पोजिशन पर काम किया। बाद में उन्होंने भारतीय सांख्यिकी संस्थान, कोलकाता में एक संकाय के रूप में काम किया था।
नारायण सिंह की बीमारी बढ़ने की वजह से उनकी हालत खराब हो गई और उन्हें कांके के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ साइकियाट्री में भर्ती करा दिया गया जहाँ पर वर्ष 1985 तक उनका इलाज चला। वर्ष 1987 में वशिष्ठ नारायण सिंह अपने गांव बसंतपुर लौट आए थे। उसके बाद वो अपने बड़े भाई के साथ पुणे चले गए,वर्ष 1989 में पुणे में यात्रा करते हुए बीच में से गायब हो गए, सभी परिवार के लोगो ने उन्हें बहुत ढूंढा पर वो नहीं मिलें| लगभग 4 साल बाद वर्ष 1993 में नारायण सिंह बिहार के सारण जिले के छपरा के पास डोरीगंज में पाए गए थे, जब वो मिले तो उनकी दाढ़ी बहुत ज्यादा बढ़ी हुई थी, कपडे बहुत ज्यादा गंदे थे और उनकी मानसिक स्थिति भी सही नहीं थी, इसीलिए उन्हें मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान, बंग्लौर में भर्ती कराया गया। बाद में 2002 में मानव व्यवहार और संबद्ध विज्ञान संस्थान दिल्ली में उनका उपचार किया। 2014 में मधेपुरा के भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय में उन्हें विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया था।
वशिष्ठ नारायण सिंह एक मूक गणितज्ञ थे जिन्होंने गणित में नई प्रमेयों के साथ साथ और भी कई अनुमानों का आविष्कार किया था। भारत के गणितीय प्रतिभाशाली वशिष्ठ नारायण सिंह का जीवन कुछ रिश्तो और सरकारी उदासीनता के कारण लंबे समय तक उलझा रहा, जिसकी वजह से उन्होंने तीन दशक से अधिक समय तक सिज़ोफ्रेनिया जैसी बीमारी से लड़ाई लड़ी। नोबेल पुरस्कार विजेता जॉन फोर्ब्स नैश जिन्होंने गेम थ्योरी में नैश संतुलन का आविष्कार किया था वो भी सिज़ोफ्रेनिया नामक बीमारी से पीड़ित थे, लेकिन उन्हें सबसे अच्छी देखभाल और उपचार मिला जिस वजह से वो कुछ समय बाद बिलकुल ठीक हो गए थे। लेकिन सिंह के मामले में उन्हें कोई सहायता या उपचार नहीं मिला और ना ही उन्हें राज्य सरकार या केंद्र सरकार की तरफ से कोई सम्मान या मान्यता नहीं दी गई जिसके वो हकदार थे। उन्होंने अपना जीवन बिना किसी पहचान के जीया था, अंत में पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में लंबी बीमारी के बाद, नारायण सिंह का 14 नवंबर 2019 को 72 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
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